• बुद्धिमत्ता की परीक्षा


एक दिन लीसा नाम का एक व्यक्ति राजा इवानुश्का के दरबार में आया। कहने लगा हे राजन, मैं आपके दरबार में नौकरी प्राप्त करने की इच्छा से आया हूँ , आप जो भी काम मुझे दें मैं करने को तैयार हूँ। वैसे मैं पढ़ा लिखा युवक हूँ।
        राजा बोला -  हम तुम्हारी परीक्षा लिए बिना तुम्हे नौकरी नहीं दे सकते, यदि तुम हमारे यहाँ नौकरी करना चाहते हो तो हमारे दरबार में सुबह ही हाजिर हो जाना। परन्तु याद रहे तुम कोई भी उपहार हमारे लिए नहीं लाना, लेकिन बिना उपहार के खाली हाथ भी मत आना । सारे दरबारी राजा का मुँह देखने लगे
           लीसा ने सिर झुका के अभिवादन किया और 'जो आज्ञा '  कह कर चला गया अगले दिन लीआ दरबार में उपस्थित हुआ तो उसके हाथ में एक सफ़ेद कबूतर था ।  राजा के सामने पहुंच कर लीसा बोला -  राजन यह लीजिये मेरा उपहार । यह कहकर कबूतर राजा की ओर बढ़ा दिया । परन्तु जो ही राजा ने हाथ बढ़ाया कबूतर उड़ गया । राजा ने कहा -  पहली परीक्षा में तुम सफल हुए हो । इसके पश्चात् राजा ने धागे का एक छोटा-सा टुकड़ा लीसा को देते हुए कहा -  कल हमारे लिए इस धागे से आसान बुनकर लाना । हम उसी आसान पर बैठेंगे ।
         लीसा ने धागा लिया और 'जो आज्ञा राजन !  कहकर चल दिया । सारे दरबारी इस बार लीसा को देखने लगे और सोचने लगे की यह व्यक्ति तो निरा मूर्ख लगता है । पर शाम को लीसा ने राजा के नौकरो के हाथ एक सींक भिजवाई और कहलाया -  इसका बना चरखा रात तक मेरे पास पंहुचा देना । सुबह मैं आसान लेकर आऊंगा । राजा लीसा का मतलब समझ गया । अगले दिन राजा ने अपने सिपाहियों के हाथ कुछ फ़ूलों के बीज भेजे और कहलवाया-  कल सुबह इन बीजों से उगे फूल खिलते पौधे लेकर हाजिर हो जाओ ।
          लीसा ने सिपाहियों को दो गत्ते के डिब्बे दिए और राजा के पास संदेश भिजवाया -  राजन मैं बहुत गरीब आदमी हूँ इन डिब्बों में से एक में धुप और एक में हवा भर कर भिजवा दीजिये।
फूल खिल जाएंगे और मैं लेकर दरबार में हाजिर हो जाऊंगा ।
        राजा,  मंत्री व दरबारी लीआ की चतुराई से प्रसन्न हो गए थे । सभी ने लीसा को नौकरी देने की राजा इवानुश्का को सलाह दी।
    पर राजा हार मानने को तैयार न था । राजा ने सोचा एक बार मैं लीसा की परीक्षा और ले लूँ , तभी उसे कोई अच्छी नौकरी दूँ राजा ने अपने सिपाहियों से लीसा के पास सूचना भिजवाई -  राजा का आदेश है की तुम सुबह राजा के दरबार में हाजिर हो ।
लेकिन न तुम पैदल दरबार में आओ और न ही घोड़े पर । न तुम वस्त्र पहनकर दरबार में आओ और न ही नंगे बदन ।
       राजा की इस शर्त से सभी दरबारी व सिपाही सकते में आ गए । और सोचने लगे की आज राजा की सूचना पाकर लीसा रातों - रात राज्य छोड़कर भाग जायेगा । वे सोच रहे थे की शायद  राजा इवानुश्का को लीसा की बुद्धिमत्ता पर शक है और उसको नौकरी नहीं देना चाहते हैं । इसी कारण ऐसी अटपटी शर्त रखी है।
        परन्तु उसकी कल्पना के विपरीत लीसा सुबह ही दरबार में हाजिर हुआ । वह कछुए में सवार होकर दरबार में पंहुचा था ।  सभी दरबारियों की निगाह लीसा पर ठहरी हुई थी । लीसा ने अपने शरीर पर मछली पकड़ने का जाल ओढ़ा हुआ था ।
          लीसा  ने जाकर राजा को झुक कर प्रणाम किया । राजा बोले -  लीसा तुम सचमुच बुद्धिमान हो । तुमने मेरी उन शर्तो को पूरा कर दिखाया जिन शर्तो को सुनकर मेरे अपने दरबारियों व मंत्रियो का सिर नीचा हो गया । मैं तुम्हे आज से ही अपना प्रमुख सलाहकार व मंत्री नियुक्त करता हूँ ।
         सारा दरबार तालियों से गूंज उठा । सारे राज्य में चारो तरफ लीसा की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा हो रही थी ।

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