• अनोखी गुरुदक्षिणा

     

                •  अनोखी गुरुदक्षिणा 



एक गुरूकुल में तीन शिष्यों ने अध्यन पूरा करने के बाद गुरु से पूछा की वे गुरु दक्षिणा में क्या दे सकते हैं । गुरु मंद-मंद मुस्काये और फिर स्नेहपूर्वक बोले, 'मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भरके सूखी पत्तियाँ चाहिए, ला सकोगे ? तीनो बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा की सूखी पत्तियाँ तो जंगल में बेकार ही पड़ी रहती हैं। यह इच्छा तो बड़ी आसानी से पूरी की जा सकती है । वे एक स्वर में बोले, जैसी आपकी आज्ञा गुरूजी'।
      तीनो नजदीक के जंगल में पहुंचे। लेकिन यह देख उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि वह सूखी  पत्तियाँ तो केवल एक 
ही मुट्ठी भर ही थी । वे सोच में पड़ गए कि जंगल से कौन सूखी पत्तियाँ उठा कर ले गया होगा। इतने में ही उन्हें दूर से कोई किसान आता दिखाई दिया। वे उसके पास पहुंच कर उससे एक थैला भर सूखी पत्तियों के लिए विनती करने लगे। किसान ने उनसे श्रमा याचना करते हुए कहा कि वह मदद इसलिए नहीं कर 
सकता क्योकि उसने सूखी पत्तियों का उपयोग खाद बनाने के लिए पहले ही कर लिया है। किसान ने उन्हें पास के गाँव जाने को कहा। तीनो ने गाँव का रास्ता लिया।
         वहां पहुंचकर उन्होंने एक व्यापारी से मदद मांगी। व्यापारी ने कहा कि कुछ पैसे कमाने के लिए उसने तो सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उन्हें एक बुढ़िया का पता दिया जो सूखी पत्तियाँ इकट्ठा करती है। लेकिन यहाँ भी भाग्य ने तीनो का साथ नहीं दिया क्योकि बुढ़िया तो हर दिन चुनी सूखी पत्तियों स औषधि बना लेती थी। तीनो खली हाथ गुरुकुल लौट आये। गुरूजी ने उन्हें देखकर स्नेह से पूछा, " पुत्रो " ले आये गुटूदाक्षिणा ? तीनो शिष्यों ने सर झुका लिया। गुरु द्वारा दोबारा पूछने पर एक शिष्य ने कहा, हमें श्रमा कीजिये गुरूजी हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाए। हमने सोचा था की जंगल में तो सूखी पत्तियां सर्वत्र बिखरी रहती है लेकिन आश्चर्य है की लोग उनका भी कई तरह से उपयोग करते हैं। 
        गुरु जी पहले की तरह मुस्कराते हुए बोले, निराश न हो, अपनी प्रसन्नता न खोओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करती हैं बल्कि उनका भी अनेक तरह से उपयोग है, मुझे गुरुदक्षिणा में दे दो।'  एक शिष्य ने कहा, गुरु जी हम आपका इशारा समझ गए कि जब सर्वत्र उपलब्ध सूखी पत्तियां भी निर्रथक नहीं होती, तो उसी तरह हम छोटी से छोटी वस्तु और  व्यक्ति  को भी महत्वहीन मानकर उसका तिरस्कार नहीं कर सकते 
चींटी से लेकर हाथी तक का अपना-अपना महत्व होता है। गुरू ने उन्हे आशीष दिया। 

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