• स्वामी विवेकानंद की तीन कहानिया जो प्रेरणा देती हैं


   
1).  ( कक्षा में सच बोलने की हिम्मत का वह किस्सा )

स्वामी विवेकानंद प्रारम्भ से ही एक मेघावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे।
जब वह साथी छात्रों को कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते एक दिन इंटरवल के दौरान वो कक्षा में कुछ मित्रो को कहानी सुना रहे थे सभी उनकी बाते सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ना शुरू कर दिया।
        मास्टर जी ने अभी पढ़ना शुरू ही किया था की उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी
                   "कौन बात कर रहा है "
उन्होंने तेज आवाज में पूछा सभी ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया।
       यह जानकर मास्टर जी क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से सम्बंधित एक प्रश्न पूछने लगे जब कोई भी उत्तर न दे सका तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी सेभी वही प्रश्न किया स्वामी जी ने आसानी से उत्तर दे दिया यह देख उन्हें यकीं हो गया की स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत में लगे हुए थे फिर क्या था उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़ा होने की सजा दे दी सभी छात्र एक -एक कर बेंच पर खड़े होने लगे ,स्वामी जी ने भी यही किया तब मास्टर जी बोले नरेंद्र तुम बैठ जाओ
       "नहीं सर ,मुझे भी खड़ा होना होगा क्योकि वह में ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था स्वामी जी ने आग्रह किया और बताया की बात वह खुद कर रहे थे और बाकी साथी उसमे हिस्सा  ले रहे थे इसलिए सजा के असल हकदार वह भी है इस तरह उन्होंने मिसाल रखी की हर हाल में सच के साथ बने रहना चाहिए।



                          2).  (डर का सामना )

एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा मंदिर के पास से निकल रहे थे की तभी वह मौजूद सारे बंदरो ने उन्हें घेर लिया वह उनके नजदीक आने लगे और डराने लगे स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़कर भागने लगे पर बंदर तो मानो पीछे ही पड़ गए ,और वे उन्हें दौड़ाने लगे पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी यह सब देख रहा था ,उसने स्वामी जी को रोका और बोला, रुको उनका सामना करो।

        स्वामी जी तुरंत पलटे और बंदरो की तरफ बढ़ने लगे, ऐसा करते ही सभी बंदर भाग गए इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालो बाद उन्होंने एक सम्बोधन में कहा भी " यदि तुम कभी किसी चीज़ से भयभीत हो तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो।





                    3). (लक्ष्य पर ध्यान दो)



स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भृमण कर रहे थे एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पूल पर खड़े कुछ लड़को को नदी पर तैर रहे छिलको पर बन्दुक से निशाना लगाते देखा किसी भी लड़को का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था तब उन्होंने एक लड़के से बन्दुक ली और खुद निशाना लगाने लगे उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल- 12 निशाने लगाए और सभी बिलकुल सटीक लगे यह देख लड़के दांग रह गए और उनसे पूछा, भला आप ये कैसे कर लेते हैं। स्वामी जी बोले तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी काम में लगाओ अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तुम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए तब चूकोगे नहीं।

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